Saturday, January 10, 2009

मेरे नज़र में छग...
4 जून 2008 की सुबह राज्य की राजधानी में पहली बार मैं जब आया तो यहाँ की भीषण गर्मी ने मुझे पिछ्छे पांव लौटने का सा अनुभव कराया। तारीख़ 06 को हुए दूरदर्शन के इंटरव्यूह में चयन के बाद ज्वाइन ना करने की बजह यहाँ की जलती धूप सुलगती दोपहर और आंचभरी शाम हल्की गर्म रात ऊपर से जहां-तहां सढ़ांध मारती दुर्गंध उफ कैसे रहूंगा इस शहर में.....जबकि नौकरी मेरी ज़रूरत ही नहीं बल्की मज़बूरी भी थी॥फिर भी ना बाब ना यहां रहना....कभी नहीं सोचा था इत्तेफ़ाक से ज़ी24घंटे,छत्तीसगढ़ का इंटरव्यूह कॉल और समयांतर में चयन लगा सखाजी की यही इच्छा है....तब इस राज्य को कर्मभूमि बनाने का फैसला महज़ एक नौकरी नहीं बल्की इसे समझने की एक ज़िद और जानने की जिज्ञासा भी थी.....शुरूआत में जितनी दिक्कतें हो सकती थीं होती गईं...बाद में लगा प्रदेश ना सिर्फ नक्सली हिंसा का पर्याय है बल्की औऱ भी कुछ है..और भी कुछ हां जी और भी कुछ... राज्य में कितनी प्राकृतिक संपदा है यह मेरे लिए गौढ मुद्दा है जबकि प्रदेश में कितना प्राकृतिक सौंदर्य है यह बड़ा सवाल है...आज की आपाधापी भरी ज़िंदग़ी में वक्त कस कर भिंची मुठ्ठियों से भी खिसक रहा है...जीवन एक कठिन चुनौती बनता जा रहा है..रचनात्मकता और तकनीकि का शीतयुद्ध सा छिड़ा है...ऐंसे में दो पल घने पेड़ की छांव में बिता कर जो सुख मिलता है वह किसी उपभोग में नहीं है......मुझे यह प्रदेश सिर्फ इसीलिए अच्छा लगा कि यहाँ के लोग सीधे सरल भोलेनाथ हैं जो इनकी सबसे बड़ी कमी भी बना हुआ है,ज़्यादा पसंद आया। इतना ही नहीं यहां के लोगों के बोल-चाल रहन-सहन में गांव की खुशबू है जो अक्सर तथाकथित वैश्वीकरण में हीन भाव समझा जाता है...शेष सभी संपदाओं का भंडार व्यापारियों के लिए छोड़ता हूं कि वे ही गौर फरमाये और यहाँ के मूलनिवासियों का जो शोषण कर सकें वे करें....इस पर लकीर पीटना मुझे नहीं आता....मेरा राज्य के प्रति किसी अज़नवी को कोई भी राय बिना समझे बनाने से रुकने का आग्रह है... युवा अग्रणी पठनशील जिज्ञासु कर्मशील लोगों से इस राज्य को बड़ी उम्मीदें हैं। सिर्फ लोहे,लक्कड़,धातु धतूरों से कोई राज्य बनिया दृष्टि से संपन्न हो सकता है लेकिन लोगों की आत्मीयता,स्वागतातुरता,ईमानदारी,और फका दिली ही सच्चे मायने में रहने,बसने का सा महसूस कराती है...वरना छत की तलाश में लोग कहीं भी घर बनाने में नहीं चूकते.....और ये सब इस राज्य में मैने महसूस किया है...वस थोड़ा सा लोग कन्फ़्यूज़न छोड़ दें कुछ ज़्यादा ही किंकर्तव्यव्यूमूढ़ हैं.....अस्तु.....

3 comments:

Sanjeet Tripathi said...

लेखन पर विराम क्यों?

Unknown said...

सखाजी छत्तीसगढ़ अब छत्तीसगढ़ीयो का कहां रहा
हर ओर लालाओ की फौज खड़ी है
छत्तीसगढ़ महतारी का कलेजा खून से सन चुका है

Unknown said...

सखाजी छत्तीसगढ़ अब छत्तीसगढ़ीयो का कहां रहा
हर ओर लालाओ की फौज खड़ी है
छत्तीसगढ़ महतारी का कलेजा खून से सन चुका है