Wednesday, September 16, 2009

मोदी के 59 बरस...

17 सितंबर 1950 को गुजरात के मेहसाणा के एक मध्यम वर्गीय परिवार में नरेंद्र मोदी नाम का एक कमल का फूल खिला...जो आज वाइब्रेंट गुजरात का मुखिया है...मोदी आज 59 साल के हो गए हैं...अपने आक्रामक तेवर व अपनी विकासशील सोच के लिए पहचाने जाने वाले मोदी ने अपने जीवन में काफी उतार चढ़ाव देखे हैं...इमरजेंसी से लेकर गोधरा दंगों तक...विरोधी उन्हें मौत का सौदागर कहते रहे और उनपर चौतरफा हमले करते रहे पर वे अपना काम पूरी द़ढ़ता के साथ करते रहे...यही उनकी ताकत है...

नरेंद्र मोदी गुजरात के सबसे लोकप्रिय और सबसे ज़्यादा लंबे समय तक राज करने वाले मुख्यमंत्री हो गए हैं...गुजरात में भाजपा के वर्चस्व का एकमात्र कारण मोदी ही हैं...2002 में गुजरात में हुआ दंगों के बाद उन पर कट्टर हिंदू सांप्रदायिक नेता होने का कलंक लगा जिसे वह विकास के तमाम दावों के बावजूद साफ नहीं कर पाए...ये उनकी किस्मत ही है या विरोधियों की राजनीति...

नरेंद्र मोदी ने राजनीति मे अपना करियर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य के तौर पर शुरू किया...1987 में वह बीजेपी में शामिल हुए और एक ही साल में गुजरात शाखा के महासचिव बन गए...1995 में जब बीजेपी दो-तिहाई बहुमत के साथ सत्ता में आई तो मोदी को पार्टी के राष्ट्रीय सचिव की जिम्मेदारी दी गई...केशुभाई पटेल के नेतृत्व वाली यह सरकार कुछ ही समय चली और शंकरसिंह वाघेला के बीजेपी से अलग हो जाने से सरकार गिर गई...

1998 के विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी फिर सत्ता में आई...मगर केशुभाई का राज जनता को रास नहीं आया और उसका नतीज़ा 2001 के उपचुनावों में पार्टी की हार के रूप में सामने आया...तब सरकार और पार्टी को उबारने के लिए मोदी को मुख्यमंत्री बनाया गया...जो कि गुजरात के विकास के लिए सही निर्णय था...

2002 फरवरी में गोधरा स्टेशन पर हिंदू तीर्थयात्रियों से लदी एक ट्रेन में आग लगने(बनर्जी कमिशन की रिपोर्ट के मुताबिक) या लगाने (नानावटी कमिशन की रिपोर्ट के मुताबिक) की घटना के बाद भीषण मुस्लिम विरोधी दंगे भड़के...जिससे मोदी सरकार को खुला समर्थन मिला... मोदी हिंदुओं के नायक के तौर पर उभरे और उनको जनसमर्थन का फल 2002 और 2007के चुनावों में मिला...साथ ही हाल ही में हुए उपचुनावों में भी मोदी को उन मुस्लिम इलाकों में भी जनसमर्थन मिला जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी...

मोदी को उनके प्रशंसक और शुभचिंतक उन्हें राष्ट्रीय राजनीति करते देखना चाहते हैं...भारत को उनके जैसे द़ढ़निश्चयी नेता की सख्त ज़रूरत है...

अन्त में मोदी को नमन और जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं...

नवीन सिंह , ज़ी न्यूज़ छत्तीसगढ़...

Wednesday, July 22, 2009

इस अंजुमन में आपको आना है एक बार...

मैनें अपनी इस पहली नौकरी के पूरे 1 वर्ष के इस कार्यकाल में कुछ अनुभव किए हैं...जो शायद आप सभी लोगों ने भी अपनी पहली नौकरी में ज़रूर किये होंगे...

आप लोग मेरी इस बात पर कतई दो राय नहीं रखते होंगे कि हमारी पहली नौकरी में हमारी उस नई वैश्या के समान स्थिती होती है जो बाज़ार में पहली बार अपना शरीर बेचने के लिए जाती है...(उनका बाज़ार हमारा चैनल)...
क्योंकि जब हम फ्रेशर के तौर पर आते हैं तब हमारे सभी सीनियर इस क्षेत्र में परिपक्व हो चुके होते हैं...और जो उनके साथ पूर्व में हुआ हो वही हमारे साथ भी करने की भरसक कोशिश करते हैं...और हमारा किसी भी बात पर या किसी भी विषय पर बलात्कार करने से पीछे नहीं हटते...

जैसे पहली बार जब हमारे सीनियर हमारी लेने की कोशिश करते हैं तब हमें अपनी बेइज्जती महसूस होती है वहीं वैश्या को भी अपनी पहली रात में कुछ ऐसा ही अनुभव होता है...

पर कुछ समय निकालने के बाद या मन से काम करते रहने के बाद थोड़ी सीनियारिटी आ ही जाती है...

वैसे ही उस नई वैश्या की भी यही हालत होती है जैसे जैसे वह बाज़ार में हाथों हाथ बिकने लगती है वैसे वैसे उसमें परिपक्वता आती जाती है...बिल्कुल वैसी ही स्थिती हमारी भी होती है...

या यूं कहें कि जैसे जैसे हमारे कपड़े न्यूज़रुम में सरेआम उतारे जाते हैं वैसे वैसे हमारा कॉन्फिडेंस लेवल और भी बढ़ता जाता है...
वैसे एक बात मैं आपको बताता चलूं कि अभी हमें निर्वस्त्र नहीं किया गया है क्योंकि सीनियरों के अनुसार हमें निर्वस्त्र होने में 10-12 साल और लगेंगे...मतलब हमारा पूरा मज़ा लिया जाएगा बिना पैसे के...

ईश्वर से कामना करता हूं की जल्द से जल्द हम भी प्रोफेशनल प्रॉस्टिट्यूट बन जाए...

नवीन सिंह , ज़ी न्यूज़ छत्तीसगढ़...

Saturday, January 10, 2009

मेरे नज़र में छग...
4 जून 2008 की सुबह राज्य की राजधानी में पहली बार मैं जब आया तो यहाँ की भीषण गर्मी ने मुझे पिछ्छे पांव लौटने का सा अनुभव कराया। तारीख़ 06 को हुए दूरदर्शन के इंटरव्यूह में चयन के बाद ज्वाइन ना करने की बजह यहाँ की जलती धूप सुलगती दोपहर और आंचभरी शाम हल्की गर्म रात ऊपर से जहां-तहां सढ़ांध मारती दुर्गंध उफ कैसे रहूंगा इस शहर में.....जबकि नौकरी मेरी ज़रूरत ही नहीं बल्की मज़बूरी भी थी॥फिर भी ना बाब ना यहां रहना....कभी नहीं सोचा था इत्तेफ़ाक से ज़ी24घंटे,छत्तीसगढ़ का इंटरव्यूह कॉल और समयांतर में चयन लगा सखाजी की यही इच्छा है....तब इस राज्य को कर्मभूमि बनाने का फैसला महज़ एक नौकरी नहीं बल्की इसे समझने की एक ज़िद और जानने की जिज्ञासा भी थी.....शुरूआत में जितनी दिक्कतें हो सकती थीं होती गईं...बाद में लगा प्रदेश ना सिर्फ नक्सली हिंसा का पर्याय है बल्की औऱ भी कुछ है..और भी कुछ हां जी और भी कुछ... राज्य में कितनी प्राकृतिक संपदा है यह मेरे लिए गौढ मुद्दा है जबकि प्रदेश में कितना प्राकृतिक सौंदर्य है यह बड़ा सवाल है...आज की आपाधापी भरी ज़िंदग़ी में वक्त कस कर भिंची मुठ्ठियों से भी खिसक रहा है...जीवन एक कठिन चुनौती बनता जा रहा है..रचनात्मकता और तकनीकि का शीतयुद्ध सा छिड़ा है...ऐंसे में दो पल घने पेड़ की छांव में बिता कर जो सुख मिलता है वह किसी उपभोग में नहीं है......मुझे यह प्रदेश सिर्फ इसीलिए अच्छा लगा कि यहाँ के लोग सीधे सरल भोलेनाथ हैं जो इनकी सबसे बड़ी कमी भी बना हुआ है,ज़्यादा पसंद आया। इतना ही नहीं यहां के लोगों के बोल-चाल रहन-सहन में गांव की खुशबू है जो अक्सर तथाकथित वैश्वीकरण में हीन भाव समझा जाता है...शेष सभी संपदाओं का भंडार व्यापारियों के लिए छोड़ता हूं कि वे ही गौर फरमाये और यहाँ के मूलनिवासियों का जो शोषण कर सकें वे करें....इस पर लकीर पीटना मुझे नहीं आता....मेरा राज्य के प्रति किसी अज़नवी को कोई भी राय बिना समझे बनाने से रुकने का आग्रह है... युवा अग्रणी पठनशील जिज्ञासु कर्मशील लोगों से इस राज्य को बड़ी उम्मीदें हैं। सिर्फ लोहे,लक्कड़,धातु धतूरों से कोई राज्य बनिया दृष्टि से संपन्न हो सकता है लेकिन लोगों की आत्मीयता,स्वागतातुरता,ईमानदारी,और फका दिली ही सच्चे मायने में रहने,बसने का सा महसूस कराती है...वरना छत की तलाश में लोग कहीं भी घर बनाने में नहीं चूकते.....और ये सब इस राज्य में मैने महसूस किया है...वस थोड़ा सा लोग कन्फ़्यूज़न छोड़ दें कुछ ज़्यादा ही किंकर्तव्यव्यूमूढ़ हैं.....अस्तु.....

Sunday, December 7, 2008

पाक का सच........

पाक पर हुए हमले दरअसल उसी का सेल्फ अटेक प्रोगराम है वैसे भी उसे अपने फौजी या दूसरे लोगों की चिंता तो है नहीं जो वो इतना घिनौना काम नहीं करेगा हो सकता है ये बात भारत के कुछ सोकाल्ड सेकुलरों के गले ना उतरे मगर इसमें कोई संदेह भी नहीं कि पाक का पेशावर में हुआ हमला कोई आतंकी हमला नहीं बल्की सेल्फ प्रोमोटेड अटेक है जो उसने विश्व विरादरी को झांसा देने के लिए किया है। भारत देश अजूबा यूँ ही नहीं है यहां के लोग खास कर वो सेकुलर्स सबसे ज़्यादा मेरी इस बात से नाराज़ होंगे जो सेकुलर का नारा लगाते-लगाते कब शरहदे पार कर पाक फरस्ती करने लगते हैं पता भी नहीं चलता क्योंकि वे अपने आप को इतना बड़ा सेकुलर मानते हैं कि देश दुनिया में एक ही सच है वो है सेकुलर जो वे अनुसरण करते हैं। खैर मेरा मक़सद इस पचड़े में पड़ कर मुख्य बात से आपको भटकाना नहीं है मूल बात है पाक के इस घिनौने कृत्य की तरफ आपका ध्यान आकर्षित कराना। दरअसल आने वाले समय में ऐंसी आवाज़ें उठेंगी कि मुम्बई में पाक का हाथ बता कर भारत सरकार ने सुधरते रिश्तों को दांव पर लगा दिया है ये वही लोग कहेंगे जो इस देश के भीतर सेकुलर कहलाते हैं मतलव साफ है कौन पूछा नहीं जाना चाहिये।.....पाक की इस हरक़त पे किसी को अगर एतराज़ हो तो वह सीधे अपनी आपत्ती लगा सकता है आखिर ये देश धर्मनिरपेक्ष जो है। हाँ भई मैं आप ही से कह रहा हूँ...जी हाँ लगा सकते हो आपत्ती पाक की बुराई करने का मतलव यहाँ के मुस्लिमों की बुराई जो है।..........ऐंसा कोई कार सेवक ,बजरंगी,संघी,शिवसैनिक, या अभिनव भारत का आदमी नहीं मानता बल्की ये सोकाल्ड सेकुलरिस्ट ही ऐंसा सोचते और मुस्लिम भाइयों को भी ऐंसा सोचने मानने को उलूल-जुलूल तर्क देते रहते हैं, जो यहाँ के अल्प शिक्षित अल्पसंख्यकों के मन में घर कर जाते हैं। भारत की हर समस्या का समाधान यहाँ के कमतादादियों के पास है।

Saturday, December 6, 2008

मेरा भारत महान

राम रहीम की बातें...नैतिकता की बातें...सच की दुहाई...लाखों कस्मे वादें...मुखौटो में इंसान....ये है मेरा भारत महान.................................. दोस्तों एक शायर ने कहा है..."इशरते कतरा है....दरिया मे फ़ना हो जाना...और दर्द का हद से बढ़ना है...दवा हो जाना"......हकीकत भी इससे जुदा नही है...हालात कुछ ऐसे है कि दर्द के लिए दवा ढूंढने की जरुरत ही नही रही...अब तो इस दर्द के बढ़ते जाने का इंतज़ार करना है...उस हद तक..जब तक ये खुद दवा न बन जाए॥ नही समझे आप। कहीं से आदर्श की घुट्टी पिलाने की कोशिश नही।सिर्फ ये उस हकीकत की ओर एक इशारा है।उस मुखौटे को उतारने की इल्तजा है। जो आज हर चेहरे ने चढ़ा रखा है।बम ब्लास्ट .......आतंकवाद की बिसात पर कत्ल का कारनामा.....इसके साथ ही शुरु होता है...नैतिक अनैतिक पर बात चीत का दौर...शोर गुल थमने का नाम ही नही लेता..........लोग बन जाते हैं संवेदनशील.......जग जातीं हैं संवेदनाए...... पर बड़ा सवाल बड़ा मुद्दा ये है....कि क्या हमने झांका है कभी अपने गिरेबान में......जाना है अपनी उस मानवीय संवेदना को...जो जगती है एक खास मौके पर...कभी-कभी.....मौके-बेमौके...................या फिर आम जीवन में भी हम अपने उन मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं के प्रति सजग रहते है.......हिन्दुस्तान की एकता...अखंडता...संप्रभुता को बरकरार रखने के लिए....क्या कुछ करते है हम........................................................................................बातें बहुत सी है......दिल में.....जेहन में .......बड़ा सवाल जारी रहेगा....................लेकिन आज के लिए बस इतना ही.................
.....शरदिन्दु........

Saturday, November 29, 2008

पढें वो जो साहसी हों

nationalism
शहादत और मौत में फर्क़ होता है...इन दोनो शब्दों के बीच एक बारीक़ फर्क लाइन होती है, जो सामान्यतः नहीं दिखती इसे देखने के लिए बेहद निष्पक्ष और पैनी नज़र के साथ वेबाकी भी ज़रूरी शर्त है। जवाब मांगने वालों ज़रा समझ लो ज़्यादा भावुक मत होना दरअसल करकरे जी एक सम्मानीय पद पर थे और ज़िम्मेदार भी मग़र जिस तरह से उन्होंने खुद को सरकार के हाथों का कठपुतला बना रखा था वह अफसोसजनक था क्योंकि वह वीर कभी शहीद होने के मक़सद से आतंकी के सामने नहीं आया था उन्हे लगा कि कोई छोटा मोटा हमला है जाकर देख लेता हूँ। भूल गये साध्वी को ही सबसे बडा आतंकी समझने लगे तब ऐंसा तो होना ही था साधुओं का श्राप लगना था वह शहीद नहीं हुआ बल्कि धोखे से मर गया उसे ज़रा भी पता चल जाता कि आतंकी हमला कोई हल्का नहीं तो वह कभी मैदान में ही नहीं दिखता ये चरमपंथ नहीं मेरा वल्कि एक कडवा सच है जिसे आप संभवता सह नहीं सकेंगे क्योंकि आपको तो हिन्दुओँ या हिन्दूवादी ताक़तों को बढते हुए देखना ही नहीं ठीक लगता मैं यह खुल कर कहता हूँ करकरे शहीद नहीं हुआ......बाक़ी सबके प्रति मेरा आदर और सम्मान बराबर है...सभी सच्चे शहीदों को मेरा नमन्.....प्रणाम....आदर.....और बेहद इज्ज़त के साथ.....श्रद्धाँजली......

पढें वो जो साहसी हों

nationalism
शहादत और मौत में फर्क़ होता है...इन दोनो शब्दों के बीच एक बारीक़ फर्क लाइन होती है, जो सामान्यतः नहीं दिखती इसे देखने के लिए बेहद निष्पक्ष और पैनी नज़र के साथ वेबाकी भी ज़रूरी शर्त है। जवाब मांगने वालों ज़रा समझ लो ज़्यादा भावुक मत होना दरअसल करकरे जी एक सम्मानीय पद पर थे और ज़िम्मेदार भी मग़र जिस तरह से उन्होंने खुद को सरकार के हाथों का कठपुतला बना रखा था वह अफसोसजनक था क्योंकि वह वीर कभी शहीद होने के मक़सद से आतंकी के सामने नहीं आया था उन्हे लगा कि कोई छोटा मोटा हमला है जाकर देख लेता हूँ। भूल गये साध्वी को ही सबसे बडा आतंकी समझने लगे तब ऐंसा तो होना ही था साधुओं का श्राप लगना था वह शहीद नहीं हुआ बल्कि धोखे से मर गया उसे ज़रा भी पता चल जाता कि आतंकी हमला कोई हल्का नहीं तो वह कभी मैदान में ही नहीं दिखता ये चरमपंथ नहीं मेरा वल्कि एक कडवा सच है जिसे आप संभवता सह नहीं सकेंगे क्योंकि आपको तो हिन्दुओँ या हिन्दूवादी ताक़तों को बढते हुए देखना ही नहीं ठीक लगता मैं यह खुल कर कहता हूँ करकरे शहीद नहीं हुआ......बाक़ी सबके प्रति मेरा आदर और सम्मान बराबर है...सभी सच्चे शहीदों को मेरा नमन्.....प्रणाम....आदर.....और बेहद इज्ज़त के साथ.....श्रद्धाँजली......